देखो यह चांदनी रात निकल आई है,
कोई खुशबु साथ लेकर आई है,
इसमें कुछ रंग और ख्वाब भी साथ लायी है,
तारों में झिलमिलाती हुई ख्वाहिश भी आई है।
इस खुशबु में दर्द है और अफ़साने भी,
इस खुशबु ने बनाये कयिओं को दीवाने भी,
मेरे आँचल पर उम्मीदों की कतार जैसी ये उतरी है,
येही खुशबु मेरे देहलीज़ के पार उतरी है।
इस रात मैं जैसे शुन्य की सी गहराई है
ध्यान से देखो, शायद किसीने ये तारों की चादर बिछाई है
इसकी ठंडक मैं जैसे की समय थम गया है
ऐसा लगता है जैसे की पूरा अंतरिख्सा मुझसे जुड़ गया है।
क्या उसको भी ये रात ऐसे ही दीखता होगा
क्या वो इस रात को देख के मुझे याद करता होगा
क्या वो भी इस आस्मां को देख के कुछ कहता होगा
या फिर वो खामोश रह के इस रात को सुनती रहता होगा।
Special thanks to Saurabh for helping me with a beautiful ending...
liked it :)
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